#19: भारत का पॉडकास्टिंग परिदृश्य
आईडिया ब्रू स्टूडियो के संस्थापक आदित्य कुबेर से जानिए पॉडकास्टिंग के नए रुझान
पॉडकास्ट परिक्रमा के नये पॉडकास्ट माईक टेस्टिंग के पहले अंक में पेश है आईडियाब्रू स्टूडियो के संस्थापक आदित्य कुबेर का साक्षात्कार। आदित्य ने भारतीय पॉडकास्टिंग के भविष्य, चुनौतियों और संभावनाओं पर अपने विचार साझा किए। आदित्य ने बताया कि कैसे आईडियाब्रू विभिन्न ब्रांड्स और क्रिएटर्स के साथ मिलकर 650 से अधिक पॉडकास्ट का निर्माण, होस्टिंग और वितरण करता है। उन्होंने पॉडकास्ट मोनेटाइजेशन के विभिन्न पहलुओं और भारतीय भाषाओं में कंटेंट क्रिएशन के महत्व पर भी चर्चा की। आदित्य ने 'पॉडकास्ट पल्स सर्वे' के परिणामों को साझा करते हुए बताया कि भारतीय पॉडकास्टिंग बाजार में अभी भी काफी संभावनाएँ हैं और इसे और अधिक विस्तार की आवश्यकता है। बातचीत में, उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से पॉडकास्ट की डिस्कवरी और इंडिपेंडेंट क्रिएटर्स की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
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देबाशीषः हाय आदित्य! माइक टेस्टिंग के सबसे पहले अंक से जुड़ने के लिये शुक्रिया! मैं हिंदी मैं एक न्यूजलेटर प्रकाशित किया करता हूं, "पॉडकास्ट परिक्रमा", जो शायद आपने पढ़ा हो। ये मूलतः पॉडकास्टिंग के क्षेत्र के बारे में है. दुनिया भर में पॉडकास्टिंग में क्या चल रहा है. और मेरा प्रयास रहा है कि खास तौर पर हम देखें कि भारतीय पॉडकास्टिंग क्षेत्र में क्या चल रहा है।
मेरी पॉडकास्टिंग में रुचि करीब 15-16 साल पहले शुरु हुई थी, जब हिंदी ब्लॉगिंग, या कहें तो ब्लॉगिंग काफी व्यापक था। हम लोग भी बहुत कोशिश कर रहे थे कि भारतीय भाषाओं में ब्लॉगिंग हो और उस वक्त हमने पॉडभारती का ये एक पॉडकास्ट शुरू किया था। जो नौ एपिसोड चला फिर बंद हो गया। और उसी समय से शायद मैं आपसे भी परिचित हूं।
मुझे याद है, स्क्रिबलर नाम से आपका एक ब्लॉग चलता था, आपके दूसरे भी अन्य ब्लॉग और फिर मेरी एक अन्य शगल इंडीब्लॉगीज़, जो कि एक ब्लॉग अवार्ड वेबसाइट थी, उसके द्वारा फिर हमारा और परिचय हुआ। आप एक दफा जूरी मेंबर भी रहे। तो हमारा औपचारिक परिचय भले ना हुआ हो, हम एक दुजे से परिचित रहे हैं। तो शुरुआत करते हैं आपके एक संक्षिप्त परिचय से, फिर और बात करेंगे। चूंकि आप पॉडकास्टिंग के क्षेत्र के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, मेरे ख्याल से दर्शकों व श्रोताओं को और इस बारे में पता चलेगा कि खास तौर पर भारतीय पॉडकास्टिंग क्षेत्र में क्या हो रहा है. क्योंकि हम विदेशी पॉडकास्ट तो बहुत सुनते हैं लेकिन अपने देश के पॉडकास्ट के बारे में जानकारी शायद बहुत कम होगी। आशा है कि इस बातचीत से वो गैप थोड़ा भरेगा।
आदित्यः शुक्रिया देबाशीष, मुझे बुलाने के लिए और आपसे पुनः जुड़कर अच्छा लग रहा है। इंडीब्लॉगीज़ को कम से कम बीस साल तो हो ही गये होंगे? बहुत ही शुरू का दौर था वो। पॉडकास्ट से भी पहले का था। तो मेरा छोटा सा परिचय ये रहेगा कि मैं पिछले 25 साल से मीडिया स्पेस में हूं। न्यूजपेपर, मीडिया, एडवरटाइजिंग, डिजिटल मार्केटिंग, डॉट कॉम, काफी जगहों पर काम कर चुका हूं। आईडिया ब्रू स्टूडियो मेरा दूसरा उद्यमीय प्रयास है। आईडिया ब्रू स्टूडियो में हम तीन चीजें करते हैं: पहला, हमारे पास इंडिया का सबसे बड़ा इंडिपेंडेंट पॉडकास्टर नेटवर्क है। 650 से भी ज्यादा पॉडकास्ट हम डिस्ट्रीब्यूट, होस्ट व मॉनीटाइज़ करते हैं। इसके साथ हम ब्राँड शोल्यूशनिंग करते हैं पॉडकास्ट्स में, जहाँ पर ब्राँडेड कंटेंट द्वारा अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों को हम सेवायें प्रदान करते हैं, जैसे एंजल वन, आदित्य बिड़ला समूह, टाटा पावर, वगैरह। ये काफी बड़े समूह हैं जिनकी ज़रूरतें अलग अलग होती हैं। और तीसरा, हम खुद एक प्रकाशक हैं, तो भारत के अनेकों टॉप क्रिएटर्स के साथ हम पॉडकास्ट बनाते हैं, वितरित करते हैं, जैसे कि अंकुर वारिकु, डॉक्टर क्यूटिरस, इत्यादी। इन सब लोगों के पॉडकास्ट का हम निर्माण, होस्टिंग व वितरण करते हैं। तो ये तीन मुख्य वर्टिकल हैं आईडिया ब्रू स्टूडियो के।
देबाशीषः मेरे ख्याल से आईडिया ब्रू का नया उपक्रम जो बिंज पॉड्स नाम से शुरु किया है, वह पहले ऑडियोवाला नाम से जाना जाता था?
आदित्यः जी हाँ, AudioWallah उसका मूल नाम था। लेकिन कई कारणों से हमने उसका नाम बदल कर बिंज पॉड्स कर दिया। ऑडियोवाला नाम कुछ 6-8 महीने के लिए ही था, फिर हमने उसे बदल दिया। तो बिंज पॉड्स हमारा एक डेस्टीनेशन है, कलेक्टिव है, क्रिएटर्स का शोकेस है। उसका भविष्य में क्या होगा, देखते हैं। भारतीय पॉडकास्ट लगातार इवाल्व हो रहे हैं, सो हमारे तरफ से बिंज पॉड्स की कोई तय योजना नहीं है, परंतु एक डेस्टिनेशन होना जरूरी है, इसीलिए हमारे पास वो है।
पॉडकास्ट निर्माण प्रक्रिया
देबाशीषः मुझे एक चीज बताइए आदित्य, जो आपने कहा 650 के तकरीबन आप लोग पॉडकास्ट प्रोड्यूस कर रहे हैं उसमें से मैंने देखा है कि कुछ समाचार संबंधित हैं, जो जाहिर बात है कि नियमित रूप से अपडेट होते हैं। पर आपके संस्थान में पॉडकास्ट बनाने की प्रक्रिया कैसे रहती है? क्या क्रिएटर्स आपको अप्रोच करते हैं, या आप स्वयं बाजार खंगाल के सही लोगों के पास पहुंचते हैं, और उनसे आग्रह करते हैं कि क्या उन्हें रुचि है जुड़ने की। कॉर्पोरेट प्रोडक्शंस तो उनकी मांग के अनुरूप बनाएं जाते होंगे, पर जो दूसरे किस्म के पॉडकास्ट है, उसमें यह प्रोसेस किस तरह की रहती है?
आदित्यः दोनों में दोनों होता है। दरअसल काफी बार हम लोग क्रिएटर्स को भी अप्रोच करते हैं, क्योंकि कई क्रिएटर्स दूसरे प्लेटफॉर्म पर एक्टिव रहते हैं। कई क्रिएटर विडियो बनाते हैं, कई इंस्टाग्राम पर होते हैं। जहां हमें लगता है कि यहां पर अपॉर्चुनिटी है या फलां क्रिएटर अच्छा पॉडकास्ट बना सकते हैं तो हम उनसे संपर्क करते हैं। अगर इंटरेस्ट है, व म्युचुअली अग्रीएबल है, तो हम साथ में काम शुरू कर देते हैं। ब्रांड के साथ भी वैसे ही होता है। काफी बार हम ब्रांड्स को जाकर प्रपोज करते हैं, कि आप ऐसा करो, वैसा करो, हमारे पास क्रिएटर्स हैं, मदद के लिये। यहाँ टिपिकल बिजनेस डेवलपमेंट वाला दृष्टिकोण होता है। तो दोनों तरह के रास्ते हैं। कई बार क्रिएटर खुद आईडिया ले कर आते है, और हम ना कर देते हैं, क्योंकि हर आईडिया का पॉडकास्ट बनना मुमकिन नहीं है, बनना भी नहीं चाहिए। कई बार हम भी काफी क्लियर बोल देते की आप आप अच्छे क्रियेटर हो, पर इस आइडिया को अभी छोड़ दो, क्योंकि इसमें ना तो ऑडियंस आएगी, ना ही रेवेन्यू आएगा।
देबाशीषः इस रचनात्मक प्रक्रिया के बारे में आदित्य मैं आपसे फिर और थोड़ा बात करूंगा, क्योंकि मैं चाहता हूं कि जो लोग पॉडकास्ट बनाने में इंटरेस्टेड हैं, क्योंकि भारतीय भाषाओं में पॉडकास्ट वाकई में बहुत कम बन रहे हैं और हमने शायद सारी शैलियाँ एक्सप्लोर भी नहीं की हैं। तो एक ओर तो आपका क्रिएटिव आउटलुक है जहां आप चाहते हैं कि एकदम बढ़िया पॉडकास्ट बने और कुछ मेरे जैसे लोग हैं जो चाहते हैं कि पॉडकास्ट कैसे भी हो, पर बनें, खास तौर पर भारतीय भाषा में बनें ताकि हम अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकें। तो बाद में हम थोड़ा सा उस बारे में बात करेंगे।
पॉडकास्ट पल्स सर्वे और भारतीय पॉडकास्ट बाजार
मैं चर्चा ले जाना चाहता हूं एक बड़े रोचक विषय पर। आईडिया ब्रू ने हाल ही में एक सर्वे कराया "द पॉडकास्ट पल्स सर्वे" जिसमें आपने करीब 2200 लोगों के सैंपल का सर्वे किया। मेरे ख्याल से भारत में इस किस्म का सर्वे संभवतः बहुत ही अनोखा रहा होगा, क्योंकि भारतीय परिदृश्य में इस तरह के सर्वे कम ही होते हैं। तो उस बारे में थोड़ा बताइए आदित्य, यह कैसा सर्वे था, आपने किन लोगों से बात की और इस सर्वेक्षण से मोटे तौर पर आपको क्या पता चला?
आदित्यः जी, हमारे पार्टनर UNPAC रिसर्च की शीतल चोकसी जी के साथ हमने ये रिसर्च सर्वे करवाया था। एक दिक्कत जो भारतीय पॉडकास्ट बाजार में मैं देखता रहा हूं, और मैं विगत 8 सालों से इस क्षेत्र में सक्रीय हूं, वो यह है कि इंडिया संबंधित स्थानीय आंकड़े किसी के पास नहीं है। हम हमेशा या तो एडिसन रिसर्च का हवाला देते हैं या फिर किसी और विदेशी रिपोर्ट की ओर देखते हैं या किसी बड़े इंटरटेनमेंट रिपोर्ट में सिर्फ आधा पेज हमारी इंडस्ट्री के बारे में होता है। सो एक उद्देश्य तो ये था कि डीप डाइव कर खुद ही ये समझ ले क्या यथास्थिति है, और दूसरा जब हम ब्रांड्स या क्रिएटर्स के साथ काम करते हैं तो काफी बार हमने समाचार सुर्खियों में ये पढ़ा है की देश में हर माह 10 करोड़* लोग पॉडकास्ट सुनते हैं। ये नंबर सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन एक पॉडकास्टर के रूप में जब मैं अपना डैशबोर्ड देखता हूं तो सोचता हूं कि इसमें से एक प्रतिशत श्रोता भी रोजाना मेरे पास क्यों नहीं आ रहे हैं? इसका मतलब कोई तो गैप है। तो ये100 मिलियन कहाँ हैं, कौन है ये लोग? ये क्या सुन रहे हैं? इसी विचार से हमने ये सर्वे करवाया ताकि यह समझ सकें कि मार्केट की असल स्थिति क्या है।
तो इस सर्वे में जो मुख्य चीज सामने आई है कि उदाहरण के लिये अमरीका में जनरल पॉपुलेशन में
पॉडकास्ट शब्द 55-56 % लोग जानते हैं। आप यूएस में किसी रेस्तरां में जाकर बैठे और किसी को बोलें कि भई कौन सा पॉडकास्ट सुनते हो, तो दो में से एक बंदा आपको शायद बता दे कि मैं फलां पॉडकास्ट सुनता हूं। भारत में बमुश्किल 10 में से एक को यह पता होगा। तो पॉडकास्ट शब्द के बारे में 83% जनता में जागरुकता नहीं है। इसको आप दो तरीके से देख सकते हैं, पहला कि यह फेल हो गया, या दूसरा कि एक अपॉर्चुनिटी है। तो हम इसको देख रहे अपॉर्चुनिटी के तौर पर। अभी तो सिर्फ 17% लोगों को पता है कि पॉडकास्ट क्या है, पर 83% लोगों की अपॉर्चुनिटी है। और यहाँ आता है आपके सवाल का दूसरा भाग की स्थानीय भाषाओं में कंटेंट बन ही नहीं रहा है। तो जिस दिन वो ग्रोथ आ जाएगी तो इन शेष ~8०%, जो शायद वो लोग हैं जो रीजनल लैंग्वेज में कंटेंट कंज्यूम करते हैं जबकि बाकि 20% जो शायद हिंदी या अंग्रेजी सामग्री ही सुनते हैं, उनके लिये रीजनल या अपनी मातृभाषा में कंटेंट बनना शुरू हो जायेगा।
भारत में दो तीन एडवांटेज हमारे पास हैं, मसलन यहाँ डिस्ट्रीब्यूशन का कोई चैलेंज नहीं है। जिओ की वजह से आज 125 करोड़ भारतियों के पास मोबाइल कनेक्शन है और इन्हीं लोगों के पास म्यूजिक एप्स हैं, यूट्यूब है। अब यूट्यूब जैसे जैसे अपनी पहुंच बढ़ा रहा है, पॉडकास्ट के स्पेस में उसकी ज्यादा जल्दी बढ़त होगी क्योंकि यूट्यूब के बारे में सबको पता है। ऐसा शायद ही कोई है भारतीय जिसने यूट्यूब का प्रयोग न किया हो। तो एक बार यह थोड़ी चीजें अलाइन हो जाए, थोड़ा कंफ्यूजन कम हो ऑडियंस के मन में कि मैं कहां सुन सकता हूं पॉडकास्ट। क्या पॉडकास्ट सुनने के लिए मुझे कुछ खास यंत्र चाहिए? अगर मैं कल किसी को जाकर बताउं कि मेरा पॉडकास्ट यूट्यूब पर सुन लो, तो डिस्कवरी की समस्या वहीं खत्म हो जाती है।
भारतीय पॉडकास्ट बाजार की चुनौतियां
देबाशीषः आपके सर्वे के नतीजों में मैंने यह भी एक चीज देखी कि यद्यपि बढ़त की गुंजाइश है सिर्फ 12 प्रतिशत लोग ही करेंटली एंगेज्ड हैं। तो आपका ये कहना बिल्कुल सही है कि अनटैप्ड ऑडियंस की संख्या काफी बड़ी है। चूंकि भाषाई विविधता हमारे देश में इतनी ज्यादा है और ऑडियो भाषा का ही माध्यम है तो इसमें काफी गुंजाइश है। क्या आपको इस सर्वे में कोई ऐसी सरप्राइजिंग बात पता लगी जिसकी आपने अपेक्षा नहीं की थी?
आदित्यः हाँ, ऐसे इनसाइट्स तो बहुत आए हैं। जैसे कि जो श्रोताओं का आयु वर्ग है, आम धारणा है कि पॉडकास्ट थोड़ा ओल्डर ऑडियंस ही सुनता होगा पर यह गलत था। हमने पाया कि काफी यंग ऑडियंस इसको सुन रहे हैं। वे क्या सुन रहे हैं इसका तो हमें पहले से थोड़ा सा अनुमान था, जैसे कि हमारे अपने आंकड़ों के मुताबिक हॉरर एक अच्छा जॉनर है। पर सर्वे से सामने आया कि लोगों को सेल्फ हेल्प तथा लर्निंग में ज्यादा रुचि है। तो इस तरह की नये तथ्य निकल कर आये हैं जिनको जानना बहुत जरूरी था क्योंकि इसी के आधार पर आगे क्या कंटेंट बनाना है, क्रिएटर्स को क्या फीडबैक देना है, वह थोड़ा और क्लियर हो जाता है। हम अंधेरे में तीर नहीं छोड़ रहे होते हैं। दूसरी एक और जो बात पता लगी, तो जिन स्थानों पर हमने ये सर्वे किया था जैसे लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, पटना वगैरह, तो इन बाजारों में आप शायद सोचेंगे कि यहाँ तो रीजनल लैंग्वेज ही चलेगा, ये बात भी गलत निकली, वहां पर इंग्लिश सामग्री में भी इंटरेस्ट है क्योंकि उनका मूल उद्देश्य सुनना है।
देबाशीषः स्पॉटिफाई के आकड़ों देखकर मैं अक्सर हैरत में पड़ जाता हूँ, कि सप्ताह दर सप्ताह एक पैटर्न है। जैसे सेल्फ हेल्प कि श्रेणी का आपने ज़िक्र किया, हालांकि मुझे टॉप 10 में वो दूर दूर तक नजर नहीं आता। आपको अंततः भगवत गीता, जो अभी के माहौल के हिसाब से आप एक्सपेक्ट भी करते हैं, और स्लीजी कंटेंट जो आप उम्मीद करेंगे कि भारतीय हमेशा मोबाइल से सुनेंगे ही, जब क्लब हाउस जैसे एप्स आये थे तब भी उनका बोलबाला था, और हॉरर सर्वोपरि दिखते हैं। ये क्या सही ट्रेंड बता रहे हैं या आपको लगता है कि इसमें भी टीआरपी जैसे कुछ धांधली है?
आदित्यः नहीं नहीं, ये बिल्कुल सही है। अब ये फर्स्ट पार्टी डेटा है तो इसमें तो कोई धांधली नहीं है क्योंकि ये हम खुद पिछले तीन साल से देख रहे अब हमारे जो हॉरर के शोज हैं वो हमेशा ही टॉप पर रहते हैं, तो नथिंग सरप्राइजिंग।
कंटेंट क्रिएशन की चुनौतियां
देबाशीषः अब थोड़ा सा कंटेंट क्रिएशन की ओर चलते हैं आदित्य। आप इतने सारे क्रिएटर्स के साथ संपर्क में है, भारतीय क्रिएटर्स के लिये कंटेंट क्रिएशन व डिस्ट्रीब्यूशन में किस तरह कि चुनौतियाँ हैं खास तौर पर इंडिपेंडेंट क्रिएटर्स जो किसी प्लेटफार्म से नहीं जुड़े हैं, और उनका कैसे सामना किया जाये?
आदित्यः देखिये क्रिएटर्स के लिए सबसे बड़ा चैलेंज होता है डिस्कवरी। यही दिक्कत 20 साल पहले ब्लॉगिंग में थीः अत्यधिक सप्लाई। तो कौन अच्छा क्रिएटर है या कौन खराब इसका इसका अंततः जवाब आएगा कंसिस्टेंसी से। ब्लॉगिंग से भी उभर कर कई ऐसे लोग निकले जो बाद में नामी लेखक बन गये या अन्य कोई क्रिएटर बनें। तो ये एक क्रिएटिव आउटलेट है। आज की तारीख में आईडिया ब्रू में हम एक महीने में लगभग 600 से 700 घंटे का कंटेंट पब्लिश व डिस्ट्रीब्यूट करते हैं, तो इतने सारे क्रिएटर हैं, सब को सफलता नहीं मिलेगी। साल भर में शायद एक छोटा नंबर सफल क्रिएटर्स का रह जाएगा। और मार्केट भी काफी बदल गया है, सो आज की तारीख में आप अगर पॉडकास्टर हो और सिर्फ पॉडकास्ट बना के एप्स पर आपको कोई खोज लेगा यह सोच के बैठ जाओगे तो कुछ नहीं होगा। आपको सोशल मीडिया का प्रयोग करना ही पड़ेगा। काफी सारे क्रिएटर्स अब सोशल मीडिया से पॉडकास्टिंग की ओर आ रहे हैं, तो आपकी कंपीटीशन वहां से भी बढ़ रही है। अगर आपका पहला मीडियम, या पसंदीदा मीडियम, पॉडकास्ट है तो अब आपको सोशल मीडिया पर भी जाकर थोड़ा काम करना पड़ेगा ताकि आपके पॉडकास्ट की रिकॉल और डिस्कवरी बेहतर हो। यही सबसे बड़ा प्रॉब्लम है सॉल्व करने के लिए और इसका कोई तुरत फुरत हल नहीं है।
सोशल मीडिया और पॉडकास्ट प्रमोशन
देबाशीषः आपकी नजर में ये जो सोशल प्लेटफॉर्म्स है इनमें मुख्यतः कौन से टैप करने चाहिए पॉडकास्टर्स द्वारा?
आदित्यः आज की तारीख में अधिकतर क्रिएटर्स को वीडियो का एंगल भी ध्यान में रखना चाहिये। एक पॉडकास्टर के रूप में हमें यह नहीं सोचना है कि केवल ऑडियो ही पॉडकास्ट है। ये इवॉल्व होते रहेगा। तो आपके पस विकल्प हैं यूट्यूब, इंस्टाग्राम, कुछ हद तक फेसबुक और आपके पॉडकास्ट के जॉनर के हिसाब से अगर जमे तो एक्स (पहले ट्विटर) भी। अब कहां पर क्या जाएगा, कैसे जाएगा, वो एक तो अलग विज्ञान ही है, जो किसी इंडिविजुअल क्रिएटर के लिये काफी मशक्कत का काम है। लेकिन इससे छुटकारा नहीं है, और कोई ऑप्शन नहीं है डिस्कवरी हासिल करने के लिए, क्योंकि लगभग 50 लाख पॉडकास्ट्स है स्फाटिफाई की लाइब्रेरी में और अगर आपने अपना चार एपिसोड वहाँ डाल दिया तो कैसे कोई उसे खोज पायेगा। इससे भी ज्यादा कंटेंट है यूट्यूब पर और शायद उससे भी ज्यादा कंटेंट है इंस्टाग्राम पर। अब ये सब चीज साथ में हो के आपकी डिस्कवरी ड्राइव होती है, जो रुचि, विषय, भाषा आधारित होती है। किस इलाके से कौन आपको डिस्कवर करता है, ये तो बदलता रहेगा, पर आपको वो जाल फैला के रखना ताकि कहीं ना कहीं से आपको रिकग्निशन मिल जाए।
प्लेटफार्म का एडवांटेज
देबाशीषः इस लिहाज से आदित्य जो प्लेटफार्म हैं, जैसे आपका है या आईवीएम है या पॉकेट बॉक्स, क्या इनका कोई एडवांटेज है अपनी रीच को बढ़ाने में?
आदित्यः कुछ हद तक! थोड़ा सा एडवांटेज मिल जाता है, क्योंकि अगर व्यक्तिगत तौर पर आप अकेले सब कुछ रहे हो तो उसके मुकाबले नेटवर्क के तौर पर हम आपको थोड़ा और सपोर्ट कर सकते हैं, मसलन हम क्रॉस प्रमोट कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, बिंज पॉड के इंस्टाग्राम पेज पर विगत दिनों एक शॉर्ट था जो काफी वाइरल हो गया, वो मराठी में था, उसके दो ढाई मिलियन व्यूज़ हो गए तो उसकी वजह से और दो शोज़ को फायदा हुआ क्योंकि वो रील देख के कोई हमारे पेज पर आया और उन्होंने पाया कि ये भी चार अन्य क्रिएटर्स हैं, तो उनका भी लाभ हो गया। दूसरा हम क्रिएटर्स के बीच भी काफी कनेक्ट कराते हैं ताकि वे एक दूसरे से क्रिएटिव व ओपरेशनल बातें सीख सकें। तीसरा, हमारी ओर से हर क्रिएटर को नियमित साप्ताहिक फीडबैक जाता रहता है कि आपके शो का परफॉमेंस कैसा रहा, आप क्या करें या क्या ना करें, क्या चला, क्या नहीं चला, वगैरह। तो हम उसे अपना ही शो मानते हैं, हम सिर्फ एक एंड पॉइंट नहीं है कि जहां आप शो अपलोड करके छोड़ दो।
देबाशीषः और जो पोस्ट प्रोडक्शन का काम है, क्या ये आईडिया ब्रू खुद हैंडल करता है?
आदित्यः वो अलग अलग मामलों में अलग होता है। काफी सारे क्रिएटर ऐसे है जिनके साथ हम एंड टू एंड काम करते हैं। जैसे रिवर साइड पर ही हम अभी बात कर रहे हैं वैसे किसी प्लेटफॉर्म जा के रिकॉर्ड करके हमें लिंक भेज देंगे कि रिकॉर्डिंग हो गया, इस एपिसोड को फलां दिन पर रिलीज करना है, इसका टाइटल, डिस्क्रिप्शन ये होगा और बाकी फिर हमारी टीम देख लेती है। हमारे साउंड इंजीनियर्स हैं जो इसे पैकेज करेंगे, ये क्रिएटर को वापस जाएगा जिसके अप्रूव करने पर स्केड्यूल होके निश्चित समय पर एपिसोड लाइव हो जाएगा।
कमाई और मोनेटाइजेशन
देबाशीषः एक इंटरेस्टिंग सवाल जो मेरे ख्याल से बहुत सारे पाठकों के दिमाग में होगा, वो है कमाई के बारे में। तो पॉडकास्ट्स के मोनेटाइजेशन के बारे में आपका क्या ख्याल है? क्या ये बाजार अभी उतना परिपक्व हुआ है कि हम उससे कुछ कमाई कर सकें, या यह अभी भी ख्याली पुलाव है?
आदित्यः नहीं बिल्कुल है, बिल्कुल मोनेटाइजेबल है। मोनीटाइजेशन का मतलब सिर्फ एडवरटाइजिंग नहीं होना चाहिए। जब तक आप इसको पैसिव कमाई की तरह सोच रहे हो तब तक आपको शायद इनकम नहीं मिलेगा। कि मैंने शो डाल दिया है, अब कोई जाकर उस पर विज्ञापन बेच देगा जो प्रोग्रामेटिक ढंग से चलेगा और फिर मुझे उसमें से पैसा मिलेगा। अगर मिला भी तो कुछ मनमुताबिक कमाई नहीं होगी। तो अगर आपको वाकई इसमें से पैसा कमाना है तो कमाया जा सकता है। आप कितने क्रिएटिव हैं? आज की तारीख में आपका पॉडकास्ट कितने लोग सुन रहे हैं, हर रोज़, हर हफ्ते, हर महीने। आपने अपने श्रोताओं की तादात बढ़ाने के लिए क्या किया है? अगर आपका बिजनेस एडवाइस देने वाला पॉडकास्ट है तो तो आप लिंक्डइन पर कितने बड़े हो? आपकी वहां पर क्या विजिबिलिटी है और उससे किस ब्रांड को फायदा होगा। तो मान लीजिये कि कोई SaaS कंपनी है जो इनवॉइसिंग सॉफ्टवेयर प्रॉडक्ट बेचते हैं और आपका पॉडकास्ट स्मॉल एंड मीडियम बिजनेसेस को सलाह मशवरा देता करता, तो ये जोड़ी परफेक्ट है। आपको सही जगह पिच करना है। आज की तारीख में छोटे शोज़ को भी स्पांसरशिप मिल जाती है। परंतु अगर आपका शो हर महीने में 10 हज़ार प्लेज़ कर पा रहा है और आपकी रेवेन्यू एक्सपेक्टेशन दस लाख हो तो वो संभव नहीं है, पर हाँ आपको 20-25 हज़ार का स्पांसर ज़रूर मिल सकता है, जिससे कम से कम आपका प्रोडक्शन कॉस्ट तो निकल ही जायेगा। फिर थोड़ा सा आप मार्केटिंग में डालो और धीरे धीरे ग्रो करो। बस माइंडसेट यह नहीं होना चाहिये कि मैंने तो कंटेंट बना दिया था, अब अगर मेरे पास पैसे आए नहीं तो मानूंगा कि ये मीडियम ही फेल है।
भाषाई विविधता और बाजार का आकार
देबाशीषः मराठी के तो बहुत सारे पॉडकास्ट आईडिया ब्रू प्रोड्यूस करता है, आपको उसमें क्या अनुभव रहा है? आपके प्लैटफॉर्म पर अंग्रेजी के मुकाबले स्थानीय भारतीय भाषाओं के पॉडकास्ट्स का मार्केट साईज़ कैसा है?
आदित्यः जहां पर भी मोबाइल फोन या स्मार्टफोन अवेलेबल है वहां पर पॉडकास्टिंग जा सकता है, आपको सिर्फ वही चाहिए कंज्यूम करने के लिए और कुछ नहीं चाहिए। जहां पर लोग वॉट्सअप द्वारा कनेक्ट हो सकते हैं उनके पास मोबाइल डाटा भी है। अब बस उनको रुचि विषयक कंटेंट चाहिए। दूसरा जो आप मार्केट साइज की बात कर रहे थे, कह सकते हैं कि मराठी में ये बाज़ार थोड़ा परिपक्व है। कुछ अन्य, जैसे तमिल, तेलुगु कन्नड़, मलयालम, बंगाली भी मेच्योर हैं, गुजराती का बाजार भी परिपक्व होने लगा है। तो सबका टाइम आ रहा है। मार्केट शायद स्वतः नहीं बनेगा, आपको बनाने में श्रम भी करना पड़ सकता है। अगर आपकी सामग्री में मास अपील है, जैसे भगवत गीता ले लें, उस कंटेंट को सारे देश में कहीं ना कहीं इंटरेस्ट होगा। मराठी में हमने ऑलरेडी देखा है कि अगर आप करेक्ट मार्केट या करेक्ट ऑडियंस के लिए करेक्ट कंटेंट मैच कर लो, तो ये चलेगा। मतलब जैसे मैंने कहा हमारे पिछले जो चार या पांच सबसे बड़े एंगेजमेंट एंड वायरलिटी वाले कंटेंट है वो सब मराठी में हैं। इसमें हमने एक पैसा इनको प्रमोट करने में खर्च नहीं किया, सब वर्ड ऑफ माउथ से हुआ। हमारे क्लाइंट्स के लिए भी हमने देखा है, जैसे सकाळ मीडिया ग्रुप है या मलयाला मनोरमा है, तो इनके भी कई रीजनल लैंग्वेज में बनें कंटेंट कई बार अपने आप वायरल हो जाते हैं। कई दफा उसका नेगेटिव फीडबैक भी आता है, जब कोई नेगेटिव फीडबैक देता हो तो उसका मतलब है कि वो आपकी परवाह करता है। अगर आप भाषा और जॉनर के प्रति पैशनेट हैं तो यह जोड़ी ज़रूर काम करेगी।
पॉडकास्टिंग पर GenAI का असर
देबाशीषः दो सवाल और। इनमें पहला तो आजकल के प्रचलित शब्द GenAI से संबद्ध है। अब जब इतना सारा कंटेंट यहां तक की वॉइस और वीडियो भी अब AI द्वारा जनरेट किया जा रहा है और ओरिजिनल कंटेंट को AI द्वारा बनाये कंटेंट से पहचानना भी कठिन होता जा रहा है। क्रिएटर्स के ऊपर आप इसका कैसा असर देखते हैं?
आदित्यः जवाब देना मुश्किल है। हम लोग AI को हमारे वर्कफ्लो में काफी प्रयुक्त करने लगे हैं जहाँ समय बचाया जा सके, मसलन ट्रांसक्रिप्शन, छोटे मोटे बदलाव वगैरह। अगर आपको ऑडियोग्राम या रील्स बनाने हैं तो कई ऐसे AI टूल्स हैं जो इसे आसान बना देते हैं। ऐसे काम जिनमें रचनात्मकता की ज़रूरत नहीं पर मुझे ये काम अगर हफ्ते में 50 बार करना पड़ता है तो और लोग रखने की बजाय मैं मौजूदा लोगों को ये टूल्स देकर पैसे बचा सकता हूँ। इसका वॉयस ओवर आर्टिस्ट्स पर क्या असर होगा वो देखना पड़ेगा, अभी ये शुरवाती दिन हैं, अभी ये उस स्तर पर नहीं आया है कि किसी आर्टिस्ट की जगह ले सके। AI आधारित लेखन से जुड़े अनेक कॉपीराइट और एथिकल मुद्दे भी हैं। तो यह सारी चीज जब तक स्पष्ट नहीं होती है, मेरे हिसाब से एक डेढ़ साल में स्पष्ट हो जाएगा कि स्थिति क्या है।
देबाशीषः आपको क्या लगता है भारतीय पॉडकास्टिंग का परिदृश्य कैसा होगा अगले पाँच सालों में?
आदित्यः एक चीज तो पक्का हैः वीडियो पॉडकास्ट्स आर हेयर टू स्टे। तो अगर आप अपना पॉडकास्ट अभी वीडियो में नहीं बना रहे हो तो प्लान करो, शुरू करो क्योंकि कम से कम इंडियन आडियंस को वीडियो ज्यादा पसंद है। ऑडियो पॉडकास्ट की अपनी एक जगह बनेगी पर खास किस्म के कंटेंट के लिये। वीडियो और ऑडियो दोनों कोएक्सिस्ट करेंगे क्योंकि दोनों के लिए काफी ऑडियंस है। सो एंब्रेस वीडियो एंड मेक इट अ पार्ट ऑफ योर पॉडकास्ट।
देबाशीषः बहुत ही अच्छा सुझाव है ये आदित्य। आपके समय के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया, बहुत ही बढ़िया बातचीत रही। माइक टेस्टिंग पॉडकास्ट पर पधारने के लिये आपका दिली धन्यवाद।
आदित्यः माय प्लेजर! मुझे आमंत्रित करने के लिये शुक्रिया।
* पीडब्लूसी के ग्लोबल एंटरटेन्मेंट व मिडिया आउटलुक रपट के अनुसार यह संख्या 2019 में लगभग 5.8 करोड़ थी, जिसमें सालाना 30 फीसद बढ़त होने का अनुमान रहा है। इसके मुताबिक आज की संख्या 16 से 21 करोड़ होनी चाहिये।